सेवानिवृत्ति सम्मान समारोह का किया गया आयोजन

सूरजपुर – शासकीय महाविद्यालय सिलफिली के प्राचार्य डॉ राम कुमार मिश्र की 42 वर्षों की सेवा के पश्चात सेवानिवृत्ति के अवसर पर महाविद्यालय में सम्मान समारोह का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ संस्कृति की देवी माँ सरस्वती के छायाचित्र पर डॉ राम कुमार मिश्र तथा अन्य अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ संचालक अजय कुमार तिवारी ने की सादगी, सच्चाई, ईमानदारी तथा सरलता को रेखांकित करते हुए उनका संक्षिप्त परिचय दिया तथा उन्हें सेवानिवृत्ति की बधाई वं भावी जीवन सफलता की कामना की। वरिष्ठ प्राध्यापक बृज किशोर त्रिपाठी तथा श्री वीरेंद्र प्रसाद सिन्हा ने प्राचार्य का गुलदस्ते से स्वागत किया तथा स्वस्थ भावी जीवन की कामना की। दो भूतपूर्व छात्राओं रेखा कुशवाहा तथा सनू कुशवाहा ने अतिथियों के सम्मान में स्वागत गीत प्रस्तुत किया।
भावाभिव्यक्ति के क्रम में सर्वप्रथम प्राचार्य के भूतपूर्व छात्र अगस्त मणि चौबे ने वीडियो संदेश के माध्यम से उनके प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त की। महाविद्यालय के भूतपूर्व प्राध्यापक संदीप कुमार सोनी ने कहा कि सर महाविद्यालय के प्राचार्य नहीं बल्कि अभिभावक की तरह हैं। भूतपूर्व प्राध्यापक वरिष्ठ डॉक्टर आनंद कौशिक ने प्राचार्य के लिए अपने संस्मरण साझा किया। बृजकिशोर त्रिपाठी, प्राचार्य के मित्र रमा गोविन्द द्विवेदी, सहपाठी नरेंद्र सिंह तथा हरिशंकर सिंह वे अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि सेवानिवृत्ति वास्तव में गमगीन होने अथवा दुख व्यता करने का दिन नहीं है क्योंकि इसके पथात् ही व्यक्ति जीवन में वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त करता है, इसीलिए उसे प्रसन्न होना चाहिए सेवानिवृत व्यक्ति सेवा की जिम्मेदारियों से मुक्त हो चुका होता है। मुकुल रंजन गोयल ने प्राचार्य की सादगी की प्रशंसा की। उमाशंकर मिश्र ने कहा कि प्राचार्य कुछ न कहकर भी बहुत कुछ कह देते हैं और कुछ कह कर भी नहीं कहते। वे वरिष्ठ विचारक तथा चिंतक हैं, जो बहुत दूर की सोचते हैं। वेद प्रकाश अग्रवाल तथा विजय गुप्त ने प्रचार्य के सफल भावी जीवन की कामना की। डॉ आशा शर्मा तथा डॉ. आभा जायसवाल ने प्राचार्य के गुणों की प्रशंसा की। वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर त्रिपाठी ने कहा कि व्यक्ति की सेवानिवृति के बाद उसे नई-नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। क्योंकि इस अवस्था के बाद व्यक्ति शरीर से कमजोर हो चुका होता है। यदि यह शारीरिक श्रम नहीं करता अथवा अपने कर्म में लीन नहीं रहता तो उससे अनेक कष्टों का सामना करना पड़ता है। घर में रहने के दौरान नई पीढ़ी के लोगों के साथ सामंजस्य बिठाने में भी दिक्कत होती हैं। अतिथियों के अतिरिक महाविद्यालय के स्टाफ से वीरेन्द्र प्रसाद सिन्हा, आशीष कौशिक, श्रीमती शालिनी शांता कुजूर, श्रीमती अंजना, अमित सिंह बनाफर, डॉ. प्रेमलता एवका ने अपनी भावनाएँ व्यक्त की। सभी ने एक सुर में कहा प्राचार्य बहुत विचास्वान व्यतित्व के स्वामी है। उनके पास ज्ञान का अद्भुत भंडार है, जिसका प्रयोग वे अपने स्टाफ को शिक्षित करने के लिए करते रहे हैं। प्राचार्य के परिवार के सदस्यों में उनके बड़े पुत्र अनुराग तथा पुत्रवधू अभिलशा के वीडियो तथा ऑडियो संदेश के माध्यम से उन्हें शुभकामनाएं दीं। अपने प्रेरणास्रोत डॉ. श्याम सुंदर दुबे जो उनके आदर्श रहे हैं. के शुभकामना वीडियो संदेश ने सभी को भावविभोर कर दिया तथा सभी की आंखो में आआंसू आ गया। प्राचार्य ने सेवाकाल के अंतिम में कहा कि मैंने महाविद्यालय के परिवेश को बेहतर बनाने की कोशिश की, क्योंकि परिवेश ही सबसे बड़ा गुरु है। परिवेश के अनुसार ही लोगों को अपने लिए जमीन तलाशनी पड़ती है। हर व्यक्ति अनेक प्रकार की शक्तियों का स्वामी है, परन्तु उसकी शक्तियों में बिखराव बहुत अधिक है। यदि यह अपनी शक्तियों को सही दिशा में समेट और सहेज पाता है, उसे जीवन में नियोजित कर पाता है तो वह महान बन सकता है। संस्थान इससे जुड़े हर व्यक्ति को संस्था के प्रति समर्पित होना चाहिए तथा अपने अपने काम में कभी आलस्य नही करना चाहिए, शासकीय कार्य करते हुए हमें आत्मविकास का रास्ता भी तलाशना चाहिए क्योंकि इसी जीवन में आत्मविकास का चरम पाने वाला व्यक्ति ही सफल हो सकता है। महाविद्यालय के समस्त स्टाफ के प्राचार्य को नम आंखों से उन्हें विदा किया।

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