तेंदूपत्ता तोड़ने से मनाही..गुरुघासीदास नेशनल पार्क क्षेत्र का मामला…

सुरजपुर – गुरु घासीदास नेशनल पार्क क्षेत्र में तेन्दूपत्ता तोड़ने के लिए छत्तीसगढ़ के आदिवासियों के लिए मनाही है, लेकिन मध्यप्रदेश के ग्रामीण यहां आकर तेन्दूपत्ता तोड़ रहे हैं। इससे स्थानीय लोगों में नाराजगी है। उनका कहना है कि मध्यप्रदेश वाले तो पार्क में तेन्दू के बड़े पेड़ों को काटकर उसकी पत्ती तोड़ रहे हैं और जंगल उजड़ रहा है, लेकिन पार्क के अफसर उसे नहीं रोक पा रहे हैं, उल्टे यहाँ के रहने वालो को तेन्दूपत्ता तोड़ने नहीं दिया जाता है। जिले के ओड़गी ब्लॉक के करीब 10 गांव के 2500 परिवार गुरुघासी दास नेशनल पार्क क्षेत्र बसेरा हैं, जहां तेन्दू पत्ता खरीदने के लिए वन विभाग ने केंद्र नहीं खोला है। इसकी वजह से वे तेन्दूपत्ता नहीं तोड़ रहे हैं, तो दूसरी तरफ वे तोड़ना भी चाहें तो उनके खिलाफ कार्रवाई की बात कहकर उन्हें डराया जाता है और वे पत्ता नहीं तोड़ पा रहें। उनका कहना है कि मध्यप्रदेश हमारे क्षेत्र से लगा हुआ है। मध्यप्रदेश के सोनभद्र जिले के लोग बाइक में तेन्दूपत्ता तोड़ने इसी पार्क में आते हैं, लेकिन उन्हें नहीं रोका जाता है।लूल्ह, भुण्डा, रसौकी, तेलाईपाठ, बैजनपाठ, खोहिर, रामगढ़, छतरंग सहित कई गांव है, जहां विशेष पिछड़ी जनजाति पंडो रहते हैं। यहां के युवक बेरोजगारी के कारण दूसरे राज्यों में जाकर बड़ी संख्या में काम कर रहें हैं, क्योंकि यहां मनरेगा के तहत होने वाले काम का पैसा भी समय पर नहीं मिलता, तो सिंचाई का साधन भी नहीं है कि बिना बारिश खेती कर सकें। खेती का काम खत्म होने बाद घर पर ही बैठे रहते हैं ग्रामीणों ने बताया कि अगर हमें तेन्दूपत्ता तोड़ने दिया जाता तो हर परिवार को चार हजार का लाभ मिलता, लेकिन ऐसा नहीं होने पर वे घरों में बैठे रहते हैं और खेती के समय खाद बीज खरीदने के लिए लोन और दुकानदारों से कर्ज लेना पड़ता है। बता दें कि अगर 2500 आदिवासी परिवार 500 गड्डी पत्ता तोड़ते तो करीब एक करोड़ का लाभ मिलता और शासन द्वारा दिए जाने वाला अन्य लाभ शहीद महेन्द्र कर्मा तेन्दूपत्ता संग्राहक सामाजिक बीमा सुरक्षा योजना, सामूहिक बीमा योजना, छात्रवृत्ति योजना का मिलता जंगल आजीविका पर निर्भरता के बावजूद एसी स्थिति बन गई है जबकि ग्रामीण महुआ, तेंदू, चार को बेचकर अपनी स्थिति बेहतर बनाते है , वैसे तो बरसात की फसल मक्का, कोदो-कुटकी, अरहर की फसल अच्छी हुई तो केवल सीजन भर खाने के लिए मिल जाता है, बाकी दूसरी फसल गेंहू, जौं, चना, अलसी, आलू की फसल का लाभ बारिश की कमी व सिंचाई का साधन न होने के कारण नहीं मिल पाता है, इस वजह से यहां के ग्रामीणों का जंगल पर ही निर्भर रहना जरूरी हो जाता है. ये लोग जंगल से ही मिले तेंदूचार, महुआ आदि को ही बेचकर रोजमर्रा की वस्तुएं खाने के लिए चावल, दाल, व सब्जी, तेल, मसाला व अन्य खाद्य सामग्री लाते हैं। गौरतलब है कि बैजनपाठ, लुल्ह, भुण्डा एवं तेलई पाठ मूलतः आदिवासी, पंडो व गरीब किसानों का क्षेत्र है. यहां पर लोग कई दशकों से निवास कर रहे हैं. ये लोग मुख्य रूप से जंगल पर ही निर्भर होकर तेंदूचार, महुआ, डोरी, साल-बीज जैसेवनोपज से अपना जीवन यापन करते हैं. इसके अलावा एक रोजगार इनका तेंदूपत्ता संग्रहण भी है, प्रतिवर्ष इनको तेंदूपत्ता के सीजन का इंतजार भी रहता है कि इसे बेचकर कुछलाभ कमाने का मौका मिलेगा, उक्त सभी गांव पड़ोसी राज्य मध्यप्रदेश के सीमापर एवं ऊंची पहाड़ी पर बसा हुआ है, लेकिन उक्त गांवों का क्षेत्र गुरुघासीदास राष्ट्रीय वन उद्यान बैकुंठपुर, कोरिया के अधीन है, रिजर्व फॉरेस्ट होने के कारण विभाग द्वारा तेंदूपत्ता तोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया है, इस वजह से वनवासी तेंदूपत्ता तोड़ने की योजना से वंचित