स्वास्थ्य विभाग की मनमानी उजागर करने पर पत्रकार को नोटिस

कलेक्टर को दी गई शिकायत के आधार पर प्रकाशित हुई थी खबर, बीएमओ ने अब वकील के जरिए मानहानि का दावा ठोका

सूरजपुर। बिहारपुर चांदनी हॉस्पिटल के स्वीपर सिंहलाल की फरियाद और आत्मदाह की चेतावनी से जुड़े मामले पर दबंग दुनिया में प्रकाशित समाचार ने स्वास्थ्य विभाग में हड़कंप मचा दिया था। अब इस पूरे प्रकरण को नया मोड़ देते हुए ओड़गी के बीएमओ डॉ. बंटी बैरागी ने अधिवक्ता के माध्यम से पत्रकार कौशलेन्द्र यादव को नोटिस भेजा है।

मामला कैसे शुरू हुआ

सिंहलाल, जो कि गरीब परिवार से आते हैं और जिन पर दो छोटे बच्चों की परवरिश की जिम्मेदारी है, वर्ष 2022 से कलेक्टर दर पर हॉस्पिटल में सेवा दे रहे थे। लेकिन अचानक उन्हें कलेक्टर दर से हटा दिया गया और मात्र 5 हजार रुपये मासिक पर जीवन दीप समिति के माध्यम से रखने का प्रस्ताव दिया गया। यह परिस्थिति उनके परिवार के लिए असहनीय थी। मजबूर होकर सिंहलाल ने जिला कलेक्टर सूरजपुर को लिखित शिकायत सौंपी और चेतावनी दी कि यदि पुनः कलेक्टर दर पर बहाल नहीं किया गया तो वे परिवार सहित सामूहिक आत्मदाह करने पर विवश होंगे।इसी लिखित शिकायत और प्रशासन तक पहुंची जानकारी के आधार पर खबर प्रकाशित की गई थी।

बीएमओ का रुख और वकील का नोटिस

खबर प्रकाशित होने के बाद बीएमओ डॉ. बंटी बैरागी की ओर से अधिवक्ता समीद खान ने नोटिस भेजा है। इसमें कहा गया है कि पत्रकार द्वारा प्रकाशित समाचार झूठा है और इससे उनके मुवक्किल की सामाजिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है। अधिवक्ता ने प्रेस परिषद अधिनियम 1978 व भारतीय दंड संहिता की धारा 499 का हवाला देते हुए 50 लाख रुपये की मानहानि का दावा किया है और 15 दिनों के भीतर जवाब मांगा है।

असल में बीएमओ साहब वकील के माध्यम से यह जताना चाह रहे हैं कि उनके खिलाफ छपा समाचार बिना तथ्य के था। लेकिन सवाल यह है कि जब कलेक्टर को खुद पीड़ित ने लिखित शिकायत सौंपी थी और उसी दस्तावेज़ पर खबर प्रकाशित हुई थी, तो इसमें पत्रकार की गलती कहां है?

पत्रकार का कहना

पत्रकार ने स्पष्ट कहा कि उनका उद्देश्य किसी की छवि खराब करना नहीं, बल्कि जनता की पीड़ा को उजागर करना है। “यदि शिकायत झूठी है तो बीएमओ को सबसे पहले उस कर्मचारी के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए, जिसने आवेदन दिया। लेकिन वे पत्रकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहे हैं, यह निंदनीय है।”

बड़ा सवाल

यह पहला मौका नहीं है जब स्वास्थ्य विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में आई हो। लेकिन अब प्रशासनिक शिकायतों को प्रकाशित करने पर पत्रकारों को नोटिस और मुकदमे की धमकी देना कहीं न कहीं यह दर्शाता है कि स्वास्थ्य विभाग अपनी जिम्मेदारी से बचना चाह रहा है।

इस पूरे घटनाक्रम से साफ है कि पत्रकार की ओर से कोई गलती नहीं थी। समाचार पूरी तरह कलेक्टर को दी गई लिखित शिकायत और तथ्यों पर आधारित था। अब देखना यह होगा कि जिला प्रशासन इस विवाद में किसका पक्ष सही मानता है – पीड़ित कर्मचारी और जनता की आवाज़ का, या बीएमओ के दबाव का।

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