हाथी मानव द्वंद्व, ढाई दशक में 150 इंसान व 50 हाथियों की मौत

प्रतापपुर तहसील सबसे ज्यादा प्रभावित, जंगलों से हाथियों ने किया आबादी क्षेत्र का रुख

सूरजपुर। जंगल में हाथियों के लिए न चारा है और न ही पानी. न ही इनके रहने के लिए कोई जगह है.आम आदमी मुसीबत में है और प्रतापपुर तहसील की है. जहां वन हाथियों छोटे वन कर्मचारी भी पीस रहे हैं. बात के पच्चीस साल हो गए हैं। इस दौरान 150 से ज्यादा इंसानी मौत हो चुकी है, 50 के आसपास हाथी मर चुके हैं. बावजूद इसके मानव हाथी द्वंद्व रोकने किसी ठोस पहल की शुरूआत तक शासन स्तर से शुरू नहीं हो सकी है। गौरतलब है कि प्रतापपुर तहसील में चार रेंज आते हैं जिनमें वन परिक्षेत्र प्रतापपुर. घूई. अभ्यारण्य के तमोर और पिंगला. इन सभी में वन हाथी बड़ी संख्या में हैं. 2000 के बाद कई वर्षों तक तो इनकी संख्या 100 से ज्यादा होती थी और अब कुछ वर्षों से 30 से ज्यादा है. इतने वर्षों में हाथियों ने विभिन्न गांवों में जमकर उत्पात मचाया है. कभी फसल तो कभी मकान गिराए हैं। हाथियों को जंगल में न पानी मिलता है और नहीं खाने के लिए आहार. उनकी भी मजबूरी हो गई है. कि वे इनकी तलाश में आबादी क्षेत्र में पहुंच जाते हैं. जब भी हाथियों को लेकर बातें होती हैं.शासन या वन विभाग के बड़े अधिकारी यह कह पल्ला झाड़ लेते हैं कि हाथियों के लिए जंगलों में सुविधाएं विकसित की जा रही हैं लेकिन प्रतापपुर क्षेत्र की बात करें तो 25 सालों में राहत दिलाने किसी ठोस पहल की शुरूआत भी नहीं हुई है। जो भी प्रयास दिखते हैं. वे औपचारिकता मात्र हैं.कागजी और पैसों की बबार्दी वाले हैं.पूरी स्थिति जो देखें तो मानव हाथी द्वंद्व रोकने सकारात्मक प्रयास के लिए शासन के सामने 25 साल का समय भी कम पड़ गया है.जनहानि के साथ हाथियों के कारण फसलों और मकानों को तो नुकसान होता ही है और इसका आंकलन करना भी आसान नहीं है। लेकिन अंदाजा यही है कि फसलों का नुकसान 50 हजार कहा था रेस्क्यू सेंटर में होगा हाथियों का उपचारवन विभाग ने करोड़ों खर्च कर रमकोला क्षेत्र में रेस्क्यू सेंटर बनाया है, जब इसका निर्माण हो रहा था, अधिकारी और नेता इसे बड़ी उपलब्धि बताते थे। उनका बयान होता था कि जंगली हाथियों को पकड़कर यहां लाया जाएगा और उनका उपचार किया जाएगा. ताकि वे नुकसान न करें। इन दावों के बीच सच्चाई यही है कि यह सिर्फ पर्यटन केंद्र बनकर रह गया है. जहां नेता. अधिकारी और आम लोग घूमने और हाथी देखने जाते हैं।तमोर पिंगला के जंगलों से भी हाथी आ रहे आबादी की ओर तमोर पिंगला अभ्यारण्य के जंगलों में लगभग 30 हाथी कई वर्षों से हैं. जिन्हें पर्याप्त चारा-पानी नहीं मिलने के कारण रमकोला.घुई, बड़वार सहित कई गांवों में आ धमकते हैं.भोजन की तलाश में ये हाथी आबादी की ओर गए तथा किसी इंसान की जान चली गई, फसल बर्बाद हो गई और मकान तोड़ दिए गए। आलम अब यह है कि इन हाथियों का डर कई गांवों के लोगों में हमेशा बना रहता है। हेक्टेयर से भी कहीं ज्यादा और मकानों की संख्या हजारों में है.जंगली हाथियों के आतंक का आलम यह है कि आबादी क्षेत्रों में आये दिन इनका विचरण होता है और प्रतापपुर नगर इनसे अछूता नहीं है। शहर से लगे गांव करंजवार.गोटगांव.केराडांड, खोरमा, टुकुडांड में तो आये दिन हाथी की आमद रहती है। हाथी शहर में तहसील कार्यालय.मण्डी व स्कूल परिसर तक पहुंच गए हैं और अभी तक शासन व सत्ता के नुमाइंदे गंभीर नहीं हो पाये हैं। खर्चिले प्रयोग बने सफेद हाथी हाथियों से राहत दिलाने, उनकी लोकेशन लेने के साथ बड़े सूचना तंत्र के बीच खर्चिले प्रयोग में ट्रकें खरीदी गई, हाथियों पर अध्ययन हुआ.जागरूकता अभियान कुमकी हाथियों का काम खाओ-पियो और आराम करो कुछ इसी तरह के दावे कर्नाटक से लाए गए कुमकी हाथियों को लेकर होते थे. वे प्रशिक्षित हैं कि नहीं. ये सवाल उनपर ही खड़े होते थे जो आज भी हैं। जंगली हाथियों को इनके जरिए काबू में लाया जाएगा, पकड़ा जाएगा और रेस्क्यू सेंटर लाया जायेगा। अभी जो स्थिति है.बात यही आती है कि इनका काम केवल खाना पीना और सेंटर में पड़े रहना है। अब तक करोड़ों खर्च होने के बाद इनकी उपलब्धि क्या है, यह सिर्फ वन विभाग ही जानता हैचला.सोलर फेसिंग हुई. कॉलरआईडी. घण्टी आयी. रेस्क्यू सेंटर.सायरन.बजुका.मधुमक्खी पेटियां, हाथी विशेषज्ञ के साथ एनजीओ सहित डब्ल्यूआई जैसी संस्थाओं को काम देने की बात करें तो सब कागजों में ही सीमित रह गया और कोई ठोस पहल नहीं हो सकी कि इस बारे में सोचते और उस पर अमल करते तो शायद हाथियों को जंगलों से बाहर नहीं आना पड़ता व इंसान सुरक्षित होता और मानव हाथी द्वंद को रोकने में कामयाबी मिल जाती। उपाय प्रतापपुर क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मित्तल ने मानव हाथी द्वंद्व को लेकर कहा कि वास्तविकता यह है कि सरकारें कभी भी इस मामले को लेकर गंभीर नहीं दिखी हैं। जंगलों के विकास और उपायों के सभी दावे खोखले हैं। सबको पता है कि जंगलों का विकास ही एकमात्र उपाय है, घने और बड़े जंगल, चारा पानी की व्यवस्था ही हाथियों को आबादी की ओर आने से रोक सकती है और मानव हाथी द्वंद्व रुक सकता है।

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