पुण्यतिथि पर याद किये गए प्रेमचंद, व्यक्तित्व और कृतित्व पर हुई चर्चा

सूरजपुर – महाविद्यालय सिलफिली में साहित्यकार प्रेमचंद की पुण्यतिथि पर ‘प्रेमचंद स्मरण’ कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का प्रारंभ प्राचार्य डॉ. प्रेमलता एक्का द्वारा मां सरस्वती के छायाचित्र पर माल्यार्पण तथा दीप प्रज्ज्वलन के द्वारा हुआ। कार्यक्रम की संचालक छात्रा निक्की गुप्ता ने प्रेमचंद की रचनाओं के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेमचंद ने समाज के मजदूर, किसान की समस्याओं को बहुत विस्तार से अपनी कहानियों तथा उपन्यासों में स्थान दिया। प्रेमचंद महान साहित्यकार थे। यदि साहित्य के भगवान की बात की जाए, तो प्रेमचंद हिंदी साहित्य के भगवान थे। प्रेमचंद ने सर्वप्रथम कहानी विधा को यथार्थ के धरातल पर प्रस्तुत किया, उससे पूर्व कहानी जादू, टोने, तिलस्मी ऐयारी इत्यादि से संबंधित थी, जो सिर्फ मनोरंजन के लिए हुआ करता था। प्रेमचंद ने समाज के हर तबके के व्यक्ति को अपनी कहानियों तथा उपन्यासों में स्थान दिया। छात्रा पूर्णिमा सिंह ने प्रेमचंद के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विस्तार से बताते हुए कहा कि प्रेमचंद का बचपन बेहद कठिन परिस्थितियों में बीता। जब वे आठवीं कक्षा में थे, उनकी मां की मृत्यु हो गई और 2 वर्ष बाद उनके पिता की भी मृत्यु हो गई। प्रथम विवाह असफल होने के बाद उन्होंने समाज में नारी सशक्तिकरण को महत्व देते हुए बाल विधवा शिवरानी देवी से 25 वर्ष की उम्र में दूसरा विवाह किया। प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ और 15 उपन्यास लिखे। महाविद्यालय की छात्रा अनुप्रिया ने प्रेमचंद की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ का सुंदर पाठ किया।कहानी पाठ के पश्चात विद्यार्थियों को राज्यसभा टीवी द्वारा निर्मित प्रेमचंद के जीवन पर आधारित वीडियो प्रोजेक्टर के माध्यम से दिखाया गया। अजय कुमार तिवारी ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाएं 100 वर्ष पूर्व की तरह आज भी प्रासंगिक हैं क्योंकि आज भी वे समस्याएं यथावत समाज में मौजूद हैं, जो प्रेमचंद के दौर में थी। प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों से गुजरते हुए हम देखते हैं कि जैसे-जैसे प्रेमचंद का अनुभव और अध्ययन बढ़ता चला गया। प्रेमचंद आदर्शवाद से यथार्थवाद की ओर उन्मुख होते दिखाई देते हैं। प्रारंभिक कहानी ‘सौत’, ‘पंच परमेश्वर’ इत्यादि में जहां वे आदर्शवाद की स्थापना करते हुए दिखाई देते हैं, वही अंतिम कहानी ‘कफन’ और अंतिम पूर्ण उपन्यास ‘गोदान’ में पूर्णतः यथार्थवादी हो जाते हैं। कार्यक्रम के दौरान पढ़ी गई कहानी ‘पंच परमेश्वर’ के विषय में उन्होंने कहा कि 1915 में लिखी गई इस कहानी के दौरान देश में धार्मिक सहिष्णुता थी। प्रेमचंद की कहानियाँ और उपन्यास समाज के किसी न किसी समस्या से जुड़े हुए दिखाई देते हैं। उस दौर में जब जाति प्रथा अपने चरम पर थी, वे जाति-समस्या उन्मूलन के लिए लगातार लिख रहे थे। उसी दौरान उन्होंने ‘सदगति’ और ‘ठाकुर का कुआँ’ जैसी कहानियां लिखीं। नवयुवकों के अहम और बड़बोलेपन को तथा भारतीय स्त्रियों के आभूषण प्रेम को रेखांकित करते हुए उन्होंने गबन उपन्यास की रचना की। गबन उपन्यास आज भी युवा वर्ग के चरित्र को आईना दिखाता है। वह बताता है कि उसकी छोटी-छोटी झूठ और अहम का प्रदर्शन उन्हें किस तरह से नारकीय जीवन जीने पर बाध्य कर सकता है। उन्होंने प्रेमचंद की किस्सागोई की तारीफ की। प्रेमचंद मानवीय मूल्यों के क्षरण से अत्यंत चिंतित थे और वे मानव मूल्यों के उत्थान के लिए समाज को प्रेरित करते हैं। प्राचार्य डॉ. प्रेमलता एक्काने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य को पढ़ना और समझना दोनों आवश्यक है तभी समाज में बदलाव की उम्मीद की जा सकती है। अमित सिंह बनाफर ने बताया कि प्रेमचंद परंपराओं के संरक्षक हैं। रूढ़ियों और परंपराओं में अंतर हैं-रूढ़ियां जहाँ जकड़ने का काम करती हैं, परंपराएँ हमारे आत्मविश्वास को जागृत करने का काम करती हैं। आशीष कौशिक कहा कि साहित्य किसी संकाय अथवा विषय विशेष की वस्तु नहीं है, वरन साहित्य सबके लिए है और वह हमारी भावनाओं को संवेदनशील बनाए रखता है। कार्यक्रम का संचालन छात्रा निक्की गुप्ता ने तथा आभार प्रदर्शन सहायक प्राध्यापक भारत लाल कंवर ने किया।